Add To collaction

लेखनी कहानी -23-Jun-2022 भुतहा मकान

भाग 2 : बिना सिर वाला भूत 


राजन बड़ा आश्चर्य चकित था उस भूत के पदचाप की रिकॉर्डिंग को सुनकर । उसके मुंह से बोल नहीं निकले । कहीं उसका इस मकान को किराये पर लेने का निर्णय उसके लिए घातक तो सिद्ध नहीं हो जाएगा ? अब तक उसने सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही अपनी धारणा बनाई थी कि भूत प्रेत नहीं होते हैं पर यहां तो भूत की पदचाप की आवाज रिकॉर्ड होकर सुनाई भी जा रही है । अब तो मानना ही चाहिए कि भूतों का अस्तित्व है ।
बड़े असमंजस में फंस गया था राजन । अब तो मकान किराए का तीन महीने का एडवांस भी दे दिया था उसने । यदि अब वह इस मकान में नहीं रहता है तो तीन महीने का किराया जब्त हो जाएगा । इतना नुकसान उठाने की स्थिति में नहीं था राजन । अब तो कम से कम तीन महीने रहना ही पड़ेगा उसे इस भुतहा मकान में ।

वह अभी इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था कि रमा बोली "वैसे वह भूत इतना दुष्ट भी नहीं है । शुरु शुरू में तो वह केवल डराता है जिससे लोग मकान खाली कर जाएं । मगर फिर भी कोई अगर नहीं डरे और मकान छोड़कर भाग नहीं जाये तो फिर वह उस पर हमला करता है" । रमा की आंखों में भयानक भय व्याप्त था । डर के मारे उसकी आवाज भी लड़खड़ा गई थी । 

 रमा की बातें सुनकर राजन सिहर गया । अब तक वह बड़ा बहादुर मानता था स्वयं को मगर उसकी बहादुरी की पोल अब खुल रही थी । डर के मारे उसके चेहरे पर पसीना आने लगा । पसीने में वह नहा गया था । 

"जरा ए सी ऑन कीजिए न प्लीज" राजन के मुंह से इतना ही निकला 
"ए सी तो ऑन ही है । कमरा भी 'चिल्ड' ही हो रहा है" नीलू जी ने एक नैपकिन राजन को पकड़ते हुए कहा "इससे अपना पसीना पोंछ लीजिए । अपने फैसले पर एक बार पुनर्विचार अवश्य कीजिए " 

राजन ने वह नैपकिन ले लिया और पसीना पोंछने लगा । उसकी सांसों की गति थोड़ी बढ गई थी । उसने अपना चेहरा पोंछा और नैपकिन वापस पकड़ते हुए कहा "क्या आपने 'उसे' देखा है" ? 

इस प्रश्न पर सन्नाटा छा गया था कमरे में । कोई कुछ नहीं बोला । बस, घड़ी की टिक टिक की आवाज आ रही थी । इससे राजन को और घबराहट होने लगी थी । थोड़ी देर बाद शांति भंग करते हुए रमा बोली "हां देखा है । मैंने खुद उसे देखा है" 

राजन की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई । उसे तो सपने में उम्मीद नहीं थी कि रमा ये जवाब देगी । उसे इस पर और भी अधिक आश्चर्य हुआ कि रमा ने अपनी आंखों से भूत देखा है और वह अभी तक जिंदा भी है । ऐसा कैसे हो सकता है ? क्या वह भूत "सॉफ्ट भूत" है ? आजकल कुछ भी हो सकता है । जब "सॉफ्ट आतंकवादी" हो सकते हैं तो सॉफ्ट भूत क्यों नहीं हो सकते हैं ? 

राजन अभी इस सदमे से उबरा भी नहीं था कि नीलू ने कहा "मैंने भी देखा है उसे । बड़ा भयानक है वह । बाप रे बाप ! उसकी शक्ल तो है ही नहीं केवल धड़ ही धड़ है" । 
"ककक्या मतलब" ?  राजन सचमुच हकलाने लगा था ।  यह सब बातें सुनकर राजन की घिग्घी बंध गई थी । जुबां तालू से चिपक गई थी और सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थी   

राजन की यह हालत देखकर रमा और नीलू घबरा गई  थी । रमा ने एक गिलास पानी दिया राजन को ।  राजन के हाथ कंपकंपा रहे थे । उससे गिलास पकड़ा नहीं गया । तब नीलू हिम्मत बंधते हुए बोली "आप तो दिलेर आदमी हैं । ऐसे क्यों घबरा रहे हैं ? घबराने से भूत भाग थोड़े ही जाएगा । और जो आदमी ज्यादा घबराता है उसकी ज्यादा गत बनाता है यह भूत । इसको डरपोक आदमी पसंद नहीं हैं । शायद यह कोई सेना का अधिकारी रहा हो" 

राजन क्या कहता भला ? उसे अंदाजा हो गया था कि उसने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है । मगर अब क्या हो सकता है ? अब तो जो होगा सो देखा जाएगा । हिम्मत करके वह अपने घर वापस आ गया । 

रात घनी हो गई थी । राजन घर तो आ गया था मगर डर के मारे सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था । सामने ही बजरंग बली की मूर्ति रखी हुई थी । उसे सामने देखकर राजन की जान में जान आई । उसने बजरंग बली जी के सामने एक दीपक जला दिया । दीपक की यही विशेषता है कि वह न केवल अंधकार को भगाता है अपितु भय, नकारात्मकता का भी नाश करता है । इसीलिए हर शुभ कार्य का आरंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया जाता है जिससे एक आशा, उम्मीद,  उमंग , उत्साह का वातावरण तैयार हो और नकारात्मकता को समाप्त किया जा सके । 

उसने हनुमान जी की आरती "आरती कीजे हनुमान लला की" गाना आरंभ कर दी । जैसे ही आरती के शब्द उसके कानों में पड़े , उसका डर कम होने लगा । इससे उसका हौसला और मजबूत होने लगा । फिर उसने हनुमान चालीसा पढना शुरू कर दिया । और वह पढता चला गया । एक बार , दो बार , तीन बार , बार बार । जब तक उसका मन स्थिर नहीं है गया तब तक वह गाता रहा । बाद में वह हनुमान जी की मूर्ति को अपने सीने से लगाकर सो गया । लेकिन नींद कैसे आये ? भुतहा मकानों से नींद सौ सौ कोस दूर ही रहती है । राजन ने हनुमानाष्टक गुनगुनाना शुरू कर दिया । उसे पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गई  । 

क्रमश: 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
23 6.22 

   13
5 Comments

Shrishti pandey

13-Jul-2022 08:09 AM

Very nice

Reply

shweta soni

02-Jul-2022 11:07 AM

बेहतरीन रचना 👌

Reply

Abhinav ji

02-Jul-2022 07:55 AM

Very nice

Reply